‘बजरंगी भाईजान’ की भूमिका असल जीवन में बरेली के रहने वाले मनोवैज्ञानिक शैलेश शर्मा भी निभा रहे हैं. इनकी ‘मनोसमर्पण’ नाम की एक संस्था है, जो बीते कई सालों से भूले-बिसरे और मानसिक रूप से भटक लोगों को घर पहुंच रही हैं. कासगंज की रहने वाली शबाना को भी उन्होंने उसके घर पहुंचा दिया. शबाना के परिवार ने उसे मृत मान लिया था.
उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले के जामा मस्जिद गली में रहने वाले मोहम्मद ताहिर और खालिद के घर आज जश्न का माहौल है. उनकी बहन शबाना, जो सात साल पहले अचानक गायब हो गई थी, अब जीवित और सुरक्षित घर लौट आई है. परिजनों ने शबाना को मृत मानकर उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया था, लेकिन मनोवैज्ञानिक शैलेश शर्मा की कोशिशों ने एक बार फिर उम्मीद को हकीकत में बदल दिया.
शबाना (55) साल 2018 में किसी रिश्तेदार के घर गई थी, लेकिन वहां से अचानक लापता हो गईं. परिवार और पुलिस ने कई जगह उसकी काफी खोजबीन की, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. निराश होकर परिवार ने मान लिया कि वह अब जीवित नहीं हैं और रीति-रिवाज से उनका सुपुर्द-ए-खाक भी कर दिया. 12 दिसंबर 2018 को शबाना पीलीभीत जिले के अमरिया क्षेत्र में भटकती हुई पाई गईं. मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण वह अपना नाम तक भूल चुकी थीं.
शबाना को नारी निकेतन भेजा गया
अमरिया के एसडीएम के आदेश पर उन्हें नारी निकेतन, बरेली भेजा गया. इसके बाद 2022 में उन्हें बरेली के मानसिक चिकित्सालय में भर्ती किया गया. बरेली मानसिक चिकित्सालय में डॉ. आलोक शुक्ला के निर्देशन में शबाना का इलाज शुरू हुआ. समय के साथ उनकी स्थिति में सुधार हुआ. अस्पताल की डायरेक्टर डॉक्टर पुष्पा पंत त्रिपाठी ने उन्हें उनके परिवार तक पहुंचाने की पहल की और ‘मनोसमर्पण’ संस्था से संपर्क किया.
भाइयों की आंखें हुई नम
संस्था के प्रमुख शैलेश शर्मा ने शबाना की लगातार काउंसलिंग की, जिससे वह अपना नाम और घर याद कर सकी. जब शैलेश शर्मा ने शबाना के भाइयों से संपर्क किया, तो पहले उन्हें विश्वास नहीं हुआ. लेकिन जैसे ही उन्होंने बहन की पहचान की पुष्टि की, दोनों भाई बरेली आ पहुंचे. अस्पताल में शबाना को देखकर उनकी आंखें नम हो गईं. जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद शबाना को परिवार के हवाले किया गया.
‘मनोसमर्पण’ संस्था
शैलेश शर्मा अब तक 700 से ज्यादा लोगों को उनके परिवार से मिला चुके हैं. समाज में भटके, भूले-बिसरे और मानसिक रूप से बीमार लोगों के लिए उनकी संस्था ‘मनोसमर्पण’ एक नई उम्मीद बन गई है. उन्हें बरेली में ‘बजरंगी भाईजान’ के नाम से भी जाना जाता है और शबाना का मिलना उनकी मानवीय सेवा का एक और प्रमाण है. डॉ. पुष्पा पंत त्रिपाठी और डॉ. आलोक शुक्ला ने बताया कि मानसिक चिकित्सालय में इलाज के बाद स्वस्थ मरीजों को उनके घर पहुंचाना प्राथमिकता है.
इसमें ‘मनोसमर्पण’ संस्था और जरूरत पड़ने पर पुलिस का सहयोग लिया जाता है. कई सालों बाद खोई हुई बहन को पाकर कासगंज का यह परिवार अब फिर से पूरा हो गया है. यह कहानी न सिर्फ उम्मीद की लौ जलाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि इंसानियत, धैर्य और सेवा से असंभव भी संभव हो सकता है.