जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तानी नागरिकों को वापस भेजने का आदेश दिया. अटारी बॉर्डर पर एक महिला और उनकी बेटी की भावुक कहानी ने सबकी आंखें नम कर दीं.

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में हिन्दुओं के नरसंहार के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ ताबड़तोड़ एक्शन शुरू कर दिए हैं. पाकिस्तानी नागरिकों को वापस भेजने की भारत सरकार की डेडलाइन का आज आखिरी दिन है. इस वजह से देश के अलग-अलग राज्यों से बड़ी संख्या में पाकिस्तानी नागरिक अटारी बॉर्डर पहुंच रहे हैं. भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव के बीच अटारी-वाघा बॉर्डर पर भावुक कर देने वाली कई तस्वीरें भी देखने को मिलीं.
अटारी बॉर्डर पर एक ऐसी मां और बेटी की कहानी सामने आई, जिसने वहां मौजूद लोगों की आंखें नम कर दीं. यह मां के पास तो तो इंडियन पासपोर्ट है, जबकि उनकी बेटी के पास पाकिस्तानी पासपोर्ट… ऐसे में भारत सरकार के फरमान के बाद इन महिलाओं को अपनों से अलग होने का डर सता रहा है. बेटी ने रोते हुए कहा, ‘मां के बिना हम बच्चे भी नहीं जाएंगे. अगर जाना है, तो मां के साथ, वरना यहीं रहेंगे.’
क्या है पूरा मामला?
पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले में 26 लोग मारे गए. इसके बाद भारत सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों को जारी वीजा रद्द कर दिए. विदेश मंत्रालय ने 23 अप्रैल को घोषणा की कि सभी पाकिस्तानी नागरिकों को 27 अप्रैल तक भारत छोड़ना होगा. इस फैसले के बाद अटारी बॉर्डर पर सैकड़ों पाकिस्तानी नागरिक अपने परिवारों के साथ वापस लौटने के लिए जुट गए, लेकिन कई परिवारों को दस्तावेजों और नागरिकता के मुद्दों के कारण रोका गया.
इन्हीं में से एक थी शनीजा खान (बदला हुआ नाम), जो राजस्थान के जोधपुर की रहने वाली हैं और जिनकी शादी 10 साल पहले पाकिस्तान के कराची में हुई थी. शनीजा के पास भारतीय पासपोर्ट है, लेकिन उनकी 8 साल की बेटी और 6 साल के बेटे के पास पाकिस्तानी पासपोर्ट हैं. शनीजा अपनी बीमार मां से मिलने दिल्ली आई थीं, लेकिन पहलगाम हमले के बाद उन्हें और उनके बच्चों को तुरंत पाकिस्तान लौटने का आदेश मिला.
बॉर्डर पर मां-बेटी का दर्द
अटारी बॉर्डर पर शनीजा अपनी बेटी और बेटे के साथ पाकिस्तान लौटने के लिए पहुंचीं. हालांकि अधिकारियों ने उन्हें रोक दिया, क्योंकि शनीजा का भारतीय पासपोर्ट होने के कारण उन्हें पाकिस्तान जाने की अनुमति नहीं दी गई. दूसरी ओर, उनके बच्चों को उनके पाकिस्तानी पासपोर्ट के आधार पर जाने की अनुमति थी. इस स्थिति ने परिवार को भावनात्मक संकट में डाल दिया.
शनीजा की कहानी अकेली नहीं है. पाकिस्तान वापस जाते हुए 81 साल की एक अन्य महिला ने कहा, ‘पहलगाम में जो हुआ वो गलत है. तभी हम खामोश हो गए हैं. उन्हें सजा दी जाए. मुझे यहां आए 2 महीने हुए हैं.’
अटारी बॉर्डर पर कई ऐसे परिवार हैं, जिनके सदस्यों की नागरिकता और पासपोर्ट अलग-अलग देशों के हैं. ये नजारें न केवल एक परिवार की पीड़ा को दर्शाता है, बल्कि भारत-पाकिस्तान के बीच सीमा पर बंटे दिलों की त्रासदी को भी उजागर करता है.