भारत-पाकिस्तान के टकराव में मानव रहित हवाई वाहन और ड्रोन की अहमियत को देश दुनिया ने देखा। आईआईटी कानपुर पिछले दस वर्ष से भविष्य के युद्ध के लिए अनुसंधान कर रहा है। आईआईटी के विज्ञानियों ने विमानों और मिसाइलों को रडार की पकड़ से बचाने के लिए एक विशेष नैनो मैटेरियल तकनीक विकसित की है जिससे बड़े-बड़े वायुयान मिसाइल और सैन्य स्थलों को एक तरह से अदृश्य किया जा सकेगा।

कानपुर। भारत-पाकिस्तान के हालिया टकराव में मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) और ड्रोन की अहमियत को देश दुनिया ने देखा। आईआईटी कानपुर पिछले दस वर्ष से भविष्य के युद्ध के लिए अनुसंधान कर रहा है। आइआइटी के विज्ञानियों ने विमानों और मिसाइलों को रडार की पकड़ से बचाने के लिए एक विशेष नैनो मैटेरियल तकनीक विकसित की है जिससे बड़े-बड़े वायुयान , मिसाइल, टैंक और सैन्य स्थलों को एक तरह से अदृश्य किया जा सकेगा। कम व अधिक दूरी वाले ड्रोन व यूएवी का विकास किया है जिसमें सर्वाधिक चर्चा में कामीकाजी ड्रोन है जिससे देश की सैन्य मारक क्षमता कई गुणा बढ़ गई है।
संस्थान के विज्ञानियों ने प्राथमिकता में शामिल रक्षा क्षेत्र को ध्यान में रखकर कई अहम अनुसंधान किए हैं। इसको ऐसे भी समझा जा सकता है कि उप्र सरकार ने यूपी के डिफेंस कारीडोर विकास में आइआइटी कानपुर को अपना नालेज पार्टनर बनाया है। आइआइटी में यूपी सरकार की मदद से ड्रोन एक्सीलेंस सेंटर भी स्थापित किया जा चुका है। आईआईटी के निदेशक प्रो. मणीन्द्र अग्रवाल ने बताया कि पिछले साल भर में सैन्य क्षेत्र की जरूरतों को समझने के लिए कई अहम कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। इस साल आइआइटी के वार्षिक उत्सव टेककृति की थीम भी रक्षाकृति रही है जिसमें भारतीय सेनाओं के अध्यक्षों ने हिस्सा लिया है। आइआइटी के कई स्टार्टअप और रक्षा क्षेत्र के संगठन एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
कामीकाजी ड्रोन ने बढ़ाई मारक क्षमता
आइआइटी का एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग पिछले दो दशक से ड्रोन टेक्नोलाजी के अनुसंधान व विकास पर काम कर रहा है। संस्थान के शिक्षकों और छात्रों ने लगभग एक दर्जन स्टार्टअप बनाए हैं जो ड्रोन निर्माण और विकास क्षेत्र में काम कर रहे हैं। भारतीय नौसेना से लेकर वायु एवं थल सेना तक इन ड्रोन को अपने बेड़े में शामिल कर चुकी हैं। कामीकाजी ड्रोन ऐसे हैं जो विस्फोटक को साथ लेकर अपने लक्ष्य पर जाकर हमला कर सकते हैं। भारतीय सेना ने अब आईआईटी से हल्के व हाई पेलोड ड्रोन की मांग की है जिस पर काम किया जा रहा है।

सेना को ड्रोन और यूएवी उड़ान प्रशिक्षण भी दे रहा आइआइटी: ड्रोन और मानव रहित हवाई वाहनों (यूएवी) की उड़ान के लिए आइआइटी के विज्ञानियों की टीम एक उन्नत रिमोट पायलटिंग ट्रेनिंग माड्यूल (आरपीटीएम) और साफ्टवेयर-इन-द-लूप सिम्युलेटर (एसआइटीएल ) का विकास कर रही है। इसके तहत सैन्य कर्मियों को आईआईटी की टीम यूएवी उड़ान का प्रशिक्षण भी देगी।
रडार और चुंबकीय तरंगों को धता बताने वाली तकनीक
आईआईटी कानपुर से मटेरियल साइंस एंड इंजीनियरिंग में एमटेक और पीएचडी कर चुके डॉ. विशाल कुमार चक्रधारी ने आरएफ नैनो कंपोजिट नाम से कंपनी बनाई है। आइआइटी के स्टार्टअप इन्क्यूबेशन एंड इनोवेशन सेंटर (एसआइआइसी) के साथ काम कर रही कंपनी ने कार्बन और फेराइट आधारित नैनो मटेरियल को पालीमर के साथ मिलाकर ऐसी कोटिंग तैयार की है जो रडार अब्जार्वर है। इसे लगाने के बाद लड़ाकू विमान, मिसाइल, ड्रोन, जलयान, युद्धपोत, पनडुब्बी, टैंक को दुश्मन के रडार नहीं पकड़ पाते हैं।
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दुश्मन की नजर से अदृश्य कर देगा आईआईटी का ‘अनालक्ष्य’
आईआईटी कानपुर ने मेटामटेरियल की मदद से एक छलावरण ‘अनालक्ष्य’ तैयार किया है जिसके नीचे हवाई जहाज से लेकर टैंक को भी छुपाया जा सकेगा। इस आवरण में छुपी वस्तु को सिंथेटिक अपर्चर रडार से लेकर सैटेलाइट इमेज और इंफ्रारेड कैमरों से भी नहीं पहचाना जा सकेगा। ताप अवरोधी होने की वजह से अगर इस आवरण के नीचे जहाज या टैंक को इंजन स्टार्ट रहने पर भी रखा जाता है तो थर्मल इमेज कैमरे भी पहचान नहीं कर सकेंगे। इस सिस्टम का पिछले साल आइआइटी निदेशक प्रो. मणीन्द्र अग्रवाल और एयरमार्शल आशुतोष दीक्षित ने लोकार्पण भी किया है। इस तकनीक का परीक्षण भी छह साल से भारतीय सेना कर रही है।